माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति भगवान महेश के आशीर्वाद से हुई थी इसलिए भगवान महेश के नाम से समाज का नाम माहेश्वरी पड़ा। इसी लिए ही उत्पत्ति दिवस के दिन सभी माहेश्वरी भगवान महेश और मां पार्वती की आराधना कर खुद को धन्य मानते है।
पौराणिक कथा के अनुसार माहेश्वरी मूलतः क्षत्रिय समाज से थे। राजस्थान के खंडेला नगर के क्षत्रिय राजा खड़गल सेन को ऋषि आशीर्वाद पुत्र रत्न मिला। साथ ही ऋषियों ने राजा को सावचेत किया था कि वे अपने पुत्र को 20 वर्ष की आयु तक उत्तर दिशा में नहीं जाने दे। लेकिन राजा का पुत्र सुजान सिंह भूलवश शिकार करने के लिए अपने 72 उमरावों के साथ उत्तर दिशा में चले गये। यहीं नहीं, उन्होंने उस दिशा में तपस्या कर रहे सप्तऋषियों की तपस्या को भंग कर दिया। तभी सप्त ऋषियों ने राजा सहित उनके 72 उमराव को शाप दे दिया था जिससे वे सभी पत्थर बन गए थे।
इस दुखद घटना का पता चलते ही राजा सुजान सिंह की रानी चंद्रावती उनके साथ 72 उमरावों की पत्नियों को लेकर सप्तऋषि की शरण में पहुंची। ऋषि ने रानी चंद्रावती को पत्थर बने राजा और उनके 72 उमरावों को शाप मुक्त कराने के लिए भगवान महेश के अष्टाक्षर मंत्र का जाप करने को कहा।
रानी और उमरावों की पत्नियों की साधना से प्रसन्न होकर भगवान महेश सपत्नीक मां पार्वती के साथ प्रकट हुए।
भगवान महेश ने सभी को शाप मुक्त कर हिंसा का रास्ता छोड़ व्यापार का वैश्य धर्म धारण करने का आदेश दिया।
शाप मुक्त होने के बाद भी उमरावों और राजा के हाथों से हथियार नहीं छुटे। इसपर भगवान महेश ने कहा कि राजस्थान के सीकर के पास सूर्यकुण्ड में स्नान करों। सूर्यकुण्ड में स्नान करते ही सभी के हथियार पानी में गल गए। उसी दिन से उस चमत्कारी कुंड की जगह लोहागढ़ नाम से प्रसिद्ध हुई जहां माहेश्वरी लोग श्रद्धा से स्नान कर भगवान महेश की प्रार्थना करते है।
योगी प्रेमसुखानंद माहेश्वरी की पुस्तक ‘माहेश्वरी वंशोपत्ति एवं संक्षिप्त इतिहास’ के अनुसार भगवान महेश और मां पार्वती की कृपा से राजा सहित 72 क्षत्रिय उमरावों को पुनर्जीवन मिला था वो तिथि थी 3133 ईसवी पूर्व युधिष्ठिर संवत 9 के ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी। इसी लिए आज से 5158 साल पहले जन्म हुए माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति दिवस के रूप में हर साल ज्येष्ठ शुक्ल नवमी को प्रत्येक माहेश्वरी धूमधाम से महेश नवमी पर्व को मनाता है। गांव शहर में बने छोटे हो या बड़े हर माहेश्वरी संगठन इस दिन रंगारंग कार्यक्रम और सामूहिक भोज का आयोजन कर माहेश्वरी 72 गोत्र के माहेश्वरी समाज को एकता और भाईचारे के सूत्र में बंधे रखते है।
जन्म-मरण विहीन एक ईश्वर भगवान महेश में आस्था रखना और मानव मात्र के कल्याण की कामना करना माहेश्वरी धर्म का प्रमुख सिद्धांत है। माहेश्वरी समाज सत्य, प्रेम और न्याय के पथ पर चलता है। कर्म करना, प्रभु का नाम जपना है, मानव, जीव सहित पर्यावरण की निस्वार्थ सेवा करना हर माहेश्वरी अपना धर्म मानता है। आज तकरीबन देश के हर राज्य शहर में माहेश्वरी बसे हुए हैं और अपने अच्छे व्यवहार के लिए जाने जाते हैं।