
बिहार के सासाराम के पास ऐतिहासिक चंदतन पहाड़ी पर स्थापित गौतम बुद्ध की प्रतिमा को खंडित कर उसे जगह से विस्थापित करने के असामाजिक तत्वों के कृत्य के खिलाफ जयपुर में भी बुद्ध प्रेमियों में आक्रोश फैला। जन सामान्य के मुद्दों के लिए हमेशा सक्रिय रहने वाले डॉ. अंबेडकर विचार मंच ने जयपुर जिलाध्यक्ष महता राम काला के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने जयपुर जिला कलेक्टर डॉ. जितेंद्र सोनी को ज्ञापन दिया।


राष्ट्रपति के नाम दिए इस ज्ञापन में घटना से जुड़े असामाजिक तत्वों के खिलाफ यथाशीघ्र कार्यवाही करने की प्रतिनिधि मंडल ने मांग की। प्रतिनिधि मंडल में कांग्रेस प्रदेश महामंत्री सीताराम बैरवा, बहुजन साहित्य प्रचारक पूरण सिंह मौर्य, रशाीद खान, डॉ. अंबेडकर विचार मंच के सांगानेर तहसील अध्यक्ष चन्द्र प्रकाश वर्मा, युवा नेता दीपक देवन्दा सहित अन्य पदाधिकारी मौजूद रहे।
डॉ. अंबेडकर विचार मंच समिति के जयपुर जिला अध्यक्ष महता राम काला ने बताया कि यह चिंता का विषय है कि देश में गौतम बुद्ध और डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमाओं को विरूपित करने की घटनाएं अप्रत्याशित रूप से बढ़ी है।

गौरतलब है कि गणतंत्र दिवस के दिन पंजाब के अमृतसर के टाउन हॉल के बाहर स्थित डॉ. भीमराव अंबेडकर की मूर्ति को एक सिरफिरे ने उसपर चढ़कर खंडित कर दिया। पंजाब की उपरोक्त घटना के 6 दिन के दौरान ही बिहार के सासाराम के ऐतिहासिक चंदतन पहाड़ी पर स्थापित गौतम बुद्ध की प्राचीन मूर्ति को तोड़ कर जगह से विस्थापित कर दिया।
शाइनिंग टाइम्स न्यूज मीडिया के बिहार प्रतिनिधि रोहित यादव ने बताया कि पहाड़ी पर गौतम बुद्ध की यह मूर्ति काफी समय पहले से स्थापित है। पहाड़ी पर स्थापित बुद्ध की इस प्रतिमा के सामने हर साल सांस्कृतिक और पेंटिंग, आलेख लेखन जैसे कार्यक्रम होते रहे है।

शाइनिंग टाइम्स के बिहार प्रतिनिधि रोहित यादव ने जानकारी दी कि सासाराम के पास ऐतिहासिक चंदतन पहाड़ी पर बौद्धगामी सम्राट अशोक ने 256 ईसा पूर्व में एक शिलालेख लगवाया था जिसे भी अतिक्रमियों से बढ़ी मशक्कत के बाद प्रशासन ने मुक्त करवाया था। यह शिलालेख सम्राट अशोक के उन 8 ऐतिहासिक शिलालेख में से एक है जिन्हें करीब 2300 साल पहले बौद्ध शिक्षा के प्रचार के लिए स्थापित किया गया था। इस शिलालेख को ब्रिटिश शासन काल में वर्ष 1917 में शासन की ओर से संरक्षित किया गया था। जिसे 90 साल बाद 2008 में भारत के पुरातत्व विभाग ने संरक्षित स्मारक घोषित किया। बावजूद इसके यह ऐतिहासिक बुद्ध शिलालेख अतिक्रमणकारियों से सुरक्षित नहीं रह पाया था।