यह क्रोनोलोजी कुछ कहती है।
मोदी सरकार 1.0 बनने के बाद ही यकायक नवंबर 2014 को बीजेपी मेगा सदस्यता अभियान का ड्राइव लांच हुआ। लक्ष्य था चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी से भी बड़ी पार्टी बन विश्व रिकॉर्ड बनाना।
इससे पहले भाजपा स्वाभाविक रूप से RSS पर निर्भर थी। भाजपा के कोर मुद्दे और प्राइम फेस भी तब आरएसएस तय करता था। भाजपा के पिछले 25 साल के प्राइम चेहरे वाजपेई, आडवाणी, नरेंद्र मोदी सभी RSS मैटेरियल थे।
हालिया चुनाव से पहले ही भाजपा पहली बार आरएसएस को दरकिनार कर आत्मनिर्भर फैसले लेने लगी।
चुनाव के बीच भाजपा अध्यक्ष नड्डा ने कहां, “शुरुआत में हम कम सक्षम थे तब हमें आरएसएस की जरूरत पड़ती थी। अब हम सक्षम है, आज बीजेपी अपने आप को खुद चलाती है।”
इसने आरएसएस से भाजपा के तलाक की घोषणा कर दी।
चुनाव के बाद नागपुर में मोहन भागवत ने मोदी सरकार 3.0 को कई चेतावनियां एक साथ दी। अहंकार, मणिपुर मामले, विपक्ष के साथ रवेये को लेकर भागवत के बीजेपी को घेरने के प्रयास ने बीजेपी और आरएसएस के रिश्तों के बीच की खटास को उजागर कर दिया।
आरएसएस को मुस्लिमों से जोड़ने का अभियान चला रहे इंद्रेश कुमार ने जयपुर में कहां कि भाजपा के अहंकार ने उसे 241 पर रोका।
गौरतलब है कि इस चुनाव में बीजेपी ने खुले आम मुस्लिम समुदाय से दूरियां रखी थी।