ब्रिटिश काल के भारतीय दंड संहिता की जगह भारतीय न्याय संहिता की स्थापना के बाद भारत की न्यायपालिका के स्वरूप में मुख्य न्यायाधीश डी वाय चंद्रचूड़ ने बड़ा बदलाव किया। अपनी सेवानिवृत्ति के एक माह पहले चंद्रचूड़ ने लेडी ऑफ जस्टिस यानी न्याय की देवी की मूर्ति का भारतीयकरण करा दिया।
अब न्यायपालिका की प्रतीक न्याय की देवी की मूर्ति भारतीय साड़ी और गहने पहने हुए होगी। जिसकी आंखों पर पट्टी नहीं होगी। साथ ही बाएं हाथ में तलवार की बजाय भारतीय संविधान की किताब होगी।
गौरतलब है कि रोमन काल की देवी जस्टिशिया की मूर्ति को अंग्रेजों सहित कई देशों के शासकों ने न्याय के संरक्षक के रूप में अपनाया था। जिसे ब्रिटिश काल में भारत में भी स्थापित किया गया था।
न्याय की देवी की आंखों पर पट्टी बंधी होने का मतलब होता था कि न्यायपालिका किसी व्यक्ति के ओहदे, हैसियत, पद, धन या धर्म देखे बगैर समानता के साथ न्याय करता है। न्याय की देवी के हाथ में तलवार ऑथोरिटी और अन्याय के खिलाफ सजा दिलाने की शक्ति को दर्शाती थी।
सूत्रों के अनुसार न्यायपालिका की नई मूर्ति में आंखों से पट्टी हटाने से संदेश देना है कि कानून अंधा नहीं होता बल्कि खुली आंखों से वो सबको समान नजरिए से देखता है।
तलवार को हिंसा का प्रतीक मानते हुए उसकी जगह संविधान की किताब स्थापित कर यह संदेश दिया गया कि न्याय संविधान के अनुसार दिया जाता है।
न्याय की देवी के दाएं हाथ में बरकरार रखा तराजू यह संदेश देता है कि न्यायपालिका दोनों पक्षों को बराबर सुनकर बिना पक्षपात के निर्णय देता है।
न्यायपालिका में बदलाव के लिए जाने जाने वाले मुख्य न्यायाधीश डी वाय चंद्रचूड़ ने पिछले माह ही राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू से सर्वोच्च न्यायालय का झंडा और प्रतीक चिह्न का अनावरण करवाया था।