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भारत हमेशा सुधार और बदलाव का पक्षधर रहा है। लेकिन उस सुधार और बदलाव के लिए लीक से हटकर कठोर विचारधारा की डगर पर चलना पड़ता है तब कोई पेरियार (तमिल भाषा में पेरियार का मतलब होता है सम्मानित व्यक्ति) बनता है। आजाद भारत में सुधार और बदलाव की कठोर विचारधारा पर चलने वाले लोगों में तमिलनाडु के ई वी रामासामी पेरियार का नाम सर्वोच्च माना जाता है। भारत ही नहीं, दुनिया की स्थापित विचाधाराओं को झकझोर देने वाले पेरियार को संयुक्त राष्ट्र संघ के यूनेस्को ने ‘दक्षिण पूर्व एशिया’ के ‘सुकरात’ की उपाधि से संबोधित किया।

भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष राजा राम मील, समाज सुधारक रामेश्वर लाल सेवार्थी, यतेंद्र कुमार के साथ शाइनिंग टाइम्स के उप प्रबंध संपादक और डा. अंबेडकर विचार मंच समिति के जयपुर अध्यक्ष महता राम काला ने रामासामी पेरियार की जयंती के अवसर पर जयपुर में उनकी तस्वीर को पुष्प अर्पित किए।

भारत में जातिवाद, हिंदू धर्म में अस्पृश्यता, असमानता का कट्टर विरोध, पाखंड के खिलाफ जीवनभर प्रभावी आंदोलन करने वाले पेरियार की  17 सितंबर को जयंती के अवसर पर देशभर में स्मरण किया गया।

समाज ही नहीं दक्षिण भारतीय राज्यों की राजनीति को निर्णायक स्वरूप देने वाले पेरियार का जन्म 17 सितंबर 1879 को पश्चिम तमिलनाडु के इरोड़ में एक संपन्न परंपरावादी हिंदू धर्म के बलिजा जाति में हुआ था।

पेरियार ऐसे क्रांतिकारी विचारक के रूप में जाने जाते थे जिन्होंने धार्मिक आडंबर और कर्मकांडों पर प्रहार किया था। उन्होंने तमिलनाडु में ब्राह्मणवादी प्रभुत्व और जाति अस्पृश्यता के खिलाफ विद्रोह किया। हिन्दू महाकाव्यों तथा पुराणों में कही बातों की परस्पर विरोधी तथा बाल विवाह, देवदासी प्रथा, विधवा पुनर्विवाह के विरुद्ध अवधारणा, स्त्रियों तथा दलितों के शोषण के पेरियार विरोधी थे। उन्होंने हिन्दू वर्ण व्यवस्था का भी बहिष्कार किया।

ऐसे ही कोई व्यक्ति ‘पेरियार’ नहीं बन जाता। अपने आस पास की घटनाओं की प्रासंगिकता पर जब कोई चिंतन और मनन कर अस्वीकृत मानकों के खिलाफ दृढ़ विरोध और विद्रोह के भाव पैदा होते है तब पेरियार (सम्मानित या महान) व्यक्ति का जन्म होता है। ई वी रामासामी की ‘पेरियार’ तक की यात्रा इसी तय मानकों के खिलाफ दृढ़ विरोध और विद्रोह की यात्रा है।

रामासामी के पिता वेंकट नायकर अपने इलाके के जाने माने समृद्ध व्यापारी थे। बावजूद इसके बदलाव के प्रतिक रामसामी ने मानकों के खिलाफ विद्रोह का रास्ता चुना।

बचपन में परंपरागत रूप से घर में चलने वाले भजनों और उपदेशों को सुनने के दौरान वे उनकी प्रमाणिकता और प्रासंगिकता पर सवाल उठाने लगे। यही से स्थापित सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक मानकों के खिलाफ वे कट्टर विरोधी बने जिसपर वे 15 दिसंबर 1973 को वेल्लोर में मृत्यु तब दृढ़ता से कायम रहे।

दिसंबर 1944 को एक भाषण में पेरियार ने कहा, “मेरा परिवार एक रूढ़िवादी परिवार है। परिवार ने मंदिर और सराय बनाए। …. एक ऐसे परिवार में पैदा होने के बावजूद कई लोग मुझे क्रांतिकारी और चरमपंथी कहते है। उनके विचार के पीछे कारण यह है कि मैं अपने समाज के कुछ ऐसे पहलुओं पर चोट करता हूं, जो हमे नीचा दिखाते है।”

‘भेदभाव’ वाले धर्म के खिलाफ दृढ़ विद्रोह के प्रतिक ‘पेरियार

स्थापित मानकों के खिलाफ कट्टर विद्रोई स्वभाव के कारण 25 साल की उम्र में ही पेरियार को अपना घर छोड़ना पड़ा। प्रमोद रंजन की उनपर संपादित पुस्तक में उल्लेख है कि बचपन से ही जिज्ञासु प्रवृत्ति के कारण सन्यासी बनने की इच्छा से घर छोड़कर पेरियार गंगा नदी के किनारे काशी चले गए। वहां निशुल्क भोजन के दौरान अस्पृश्यता को देखकर न केवल सन्यास त्याग कर वापस गृहस्थ बनकर समाज में बदलाव के राह पर चल दिए बल्कि हिंदुत्व का त्याग कर ताउम्र नास्तिक बन गए। उन्होंने न केवल ब्राह्मण ग्रंथों की होली जलाई बल्कि रावण को अपना नायक भी माना।

पेरियार हिंदू-देवी देवताओं के प्रखर आलोचक थे। पेरियार को राम से विशेष नाराजगी थी। पेरियार का मानना था कि रामायण द्रविड़ों को आर्यों के जाल में फंसाने के लिए लिखा गया था। अगस्त 1956 में त्रिची के एक समुद्र तट पेरियार के अनुयायियों ने राम की तस्वीर जलाई थी। पेरियार ने रामायण के काउंटर में ‘सच्ची रामायण’ नाम से एक किताब भी लिखी थी, जिसमें राम सहित कई चरित्रों को खलनायक के रूप में पेश किया गया है।

पेरियार की ईश्वर के प्रति धारणा आस्था और कर्मकांड से ऊपर सांसारिक और समसामयिक थी। वे मानते थे कि यदि वास्तव में धर्म एवं ईश्वर का अस्तित्व होता, तो समाज में असमानता नहीं होती। यदि संसार में धनी-निर्धन , छोटा-बड़ा, शोषक–शोषित, ऊँच–नीच, छुआछूत आदि का भेद समाप्त कर दिया जाय तो ईश्वर और धर्म का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा।

उन्होंने गहरी संवेदना के साथ कहा था कि-
“ईश्वर नहीं है, ईश्वर बिल्कुल नहीं है, जिसने ईश्वर का आविष्कार किया वह मूर्ख है, जो ईश्वर का प्रचार करता है वह धूर्त है, जो ईश्वर को पूजता है वह जंगली/बर्बर है।”

पेरियार ने ईश्वर को लेकर 15 सवाल उठाए थे जिनका आज भी धार्मिक और नास्तिक मतों के बीच शास्त्रार्थ होता है

1- क्या तुम कायर हो, जो हमेशा ही छिपे रहते हो, कभी किसी के सामने प्रकट नहीं होते?
2- क्या तुम्हें खुशामद पसंद है, जो लोगों से दिन रात पूजा-अर्चना करवाते हो?
3- क्या तुम सदैव भूखे रहते हो, जो लोगों से मिठाई, दूध, घी आदि लेते रहते हो ?
4- क्या तुम मांसाहारी हो जो लोगों से निर्बल पशुओं की बलि चढ़वाते हो?
5- क्या तुम सोने के व्यापारी हो, जो मंदिरों में लाखों टन सोना दबाए हुए हो?
6- क्या तुम व्यभिचारी हो, जो मंदिरों में देवदासियां रखते हो?
7- क्या तुम कमजोर हो, जो रोजाना होने वाले बलात्कारों को नही रोक पाते?
8- क्या तुम मूर्ख हो, जो दुनिया के देशों में गरीबी-भुखमरी होते हुए भी अरबों रुपयों का अन्न, दूध, घी, तेल बिना खाए ही नदी-नालों में बहा देते हो?
9- क्या तुम बहरे हो जो बेवजह मरते हुए आदमी, बलात्कार होती हुई मासूमों की आवाज नहीं सुन पाते?
10- क्या तुम अंधे हो, जो रोज अपराध होते हुए नहीं देख पाते?- क्या तुम आतंकवादियों से मिले हुए हो, जो रोज धर्म के नाम पर लाखों लोगों को मरवाते रहते हो?- क्या तुम आतंकवादी हो, जो ये चाहते हो कि लोग तुमसे डरकर रहें?
13- क्या तुम गूंगे हो, जो एक शब्द नहीं बोल पाते, लेकिन करोड़ों लोग तुमसे लाखों सवाल पूछते हैं?
14- क्या तुम भ्रष्टाचारी हो, जो गरीबों को कभी कुछ नहीं देते, जबकि गरीब पशुवत काम करके कमाए गए धन की पाई-पाई तुम्हारे ऊपर न्यौछावर कर देता है?
15- क्या तुम मुर्ख हो, जो हम जैसे नास्तिकों को पैदा किया जो तुम्हे खरी-खोटी सुनाते रहते हैं और तुम्हारे अस्तित्व को ही नकारते हैं?

उनका कहना था कि मनुष्य के अतिरिक्त पृथ्वी के किसी अन्य प्राणी के लिए ईश्वर का कोई अस्तित्व नहीं है, धर्म की आवश्यकता नहीं पड़ती, जातियां नहीं बनी है, तो मात्र मनुष्यों के लिए ही ईश्वर, धर्म एवं जातियों का अस्तित्व क्यों है?

दक्षिण भारतीय राजनीति के निर्णायक नायक बने ‘पेरियार’

ईवी रामासामी पेरियार दक्षिण भारत के दिग्गज नेता थे। ऐसे नेता जिन्होंने दक्षिण भारतीय राज्यों की राजनीति तय कर दी जो आज भी प्रभावी और प्रासंगिक है।

सी रागोपालाचारी के साथ पेरियार

जल्द ही पेरियार अपने शहर के नगरपालिका के प्रमुख बन गए। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के अनुरोध पर 1919 में उन्होने कांग्रेस की सदस्यता ली। इसके कुछ दिनों के भीतर ही वे तमिलनाडु इकाई के प्रमुख भी बन गए। लेकिन अस्पृश्यता के खिलाफ किसी भी हद तक जाने को दृढ़ पेरियार के मन में युवाओं के लिए कांग्रेस द्वारा संचालित प्रशिक्षण शिविर में एक ब्राह्मण प्रशिक्षक द्वारा गैर-ब्राह्मण छात्रों के प्रति भेदभाव बरतते देख कांग्रेस के प्रति विरक्ति आ गई। उन्होने कांग्रेस के नेताओं के समक्ष दलितों तथा पीड़ितों के लिए आरक्षण का प्रस्ताव भी रखा जिसे मंजूरी नहीं मिल सकी। आखिरकार दुःखी मन से उन्होने कांग्रेस छोड़ दी। कांग्रेस छोड़ने के बाद वो दलितों के समर्थन में आंदोलन चलाने लगे।

काँग्रेस छोड़ने पर उन्होंने आत्म-सम्मान आंदोलन शुरू किया जिसका लक्ष्य गैर-ब्राह्मणों (जिन्हें वो द्रविड़ कहते थे) में आत्म-सम्मान पैदा करना था। बाद में वो 1916 में शुरू हुई एक गैर-ब्राह्मण संगठन दक्षिण भारतीय लिबरल फेडरेशन (जस्टिस पार्टी के रूप में विख्यात) के अध्यक्ष बने। पेरियार ने 1944 में अपनी जस्टिस पार्टी का नाम बदलकर द्रविड़ कड़गम कर दिया। इसी से डीएमके (द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) पार्टी का उदय हुआ। उल्लेखनीय है कि दक्षिण भारत की राजनीति के पुरोधा होने के बावजूद पेरियार ने हमेशा खुद को सत्ता की राजनीति से अलग रखा। आजादी के आंदोलन में पेरियार की भूमिका और महत्त्व के बारे में इसी बात से पता चलता है कि रामासामी के प्रभुत्व से प्रभावित होकर मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद जिन्ना ने अलग द्रविडस्थान की स्थापना की वकालत भी की थी। गौरतलब है कि पेरियार के द्रविड़ आंदोलन ने ही आज के दक्षिण भारत के प्रमुख राजनीतिक स्तंभ DMK, AIADMK और MDMK को जन्‍म दिया।

तमिल संस्कृति की रक्षा के लिए चलाया मजबूत हिंदी विरोधी आंदोलन

1937 में जब सी. राजगोपालाचारी मद्रास प्रेसीडेंसी के मुख्यमंत्री बने तब उन्होंने स्कूलों में हिंदी भाषा की पढ़ाई अनिवार्य कर दी। अस्वीकृति के लिए हमेशा दृढ़ रहे पेरियार को अपने मित्रवत रहे राजगोपालाचारी के का निर्णय गलत लगा तो वे उनके ही खिलाफ खड़े हो गए। पेरियार हिंदी विरोधी आंदोलन के अगुवा बनकर उभरे।  1938 में  पेरियार ने हिंदी के विरोध में ‘तमिलनाडु तमिलों के लिए’ का नारा दिया। उनका मानना था कि हिंदी लागू होने के बाद तमिल संस्कृति नष्ट हो जाएगी; तमिल समुदाय उत्तर भारतीयों के अधीन हो जाएगा।

 

महात्मा गांधी के तीसरे विरोधी

1919 में पेरियार ने अपने राजनीतिक सफ़र की शुरुआत कट्टर गांधीवादी और कांग्रेसी के रूप में की। वो गांधी की नीतियों जैसे शराब विरोधी, खादी और छुआछूत मिटाने की ओर आकर्षित हुए। लेकिन अंधानुकरण के विरोधी रहे पेरियार धीरे धीरे कभी महात्‍मा गांधी के शिष्‍य रहे ; वैचारिक मतभेद के कारण उनके घोर विरोधी बन गए। मोहम्‍मद अली जिन्‍ना और डॉ बीआर अंबेडकर के अलावा महात्‍मा गांधी के विरोधियों में पेरियार भी शामिल थे।

 

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  • Mahta Ram Kala, Sub Managing Editor

    महता राम काला वैचारिक आंदोलन के चेहरे के रूप में जाने जाते है। डा. अंबेडकर विचार मंच समिति के जयपुर जिलाध्यक्ष का जिम्मा संभालते हुए महता राम समाज में बदलाव हेतु कई प्रेरक अभियान संचालित करते है।

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By Mahta Ram Kala, Sub Managing Editor

महता राम काला वैचारिक आंदोलन के चेहरे के रूप में जाने जाते है। डा. अंबेडकर विचार मंच समिति के जयपुर जिलाध्यक्ष का जिम्मा संभालते हुए महता राम समाज में बदलाव हेतु कई प्रेरक अभियान संचालित करते है।