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कांग्रेस के मुख्यतम चेहरा और विपक्ष के नेता राहुल गांधी हाल ही में अमेरिका की तीन दिवसीय यात्रा से लोटे है। उनकी हर विदेशी यात्रा की तरह यह यात्रा भी असामान्य और भारत की राजनीति को प्रभावित करने वाली रही। अमेरिका प्रवास के दौरान उनका प्रत्येक शेड्यूल कांग्रेस की तय रणनीति का हिस्सा महसूस हुआ। लेकिन क्या उनकी रणनीति से कांग्रेस को और विपक्ष को फायदा मिलेगा, क्या भाजपा और ‘मोदी सरकार’ पर यह यात्रा प्रेशर बनाने वाली रहेगी। या फिर राहुल की हर यात्रा की तरह अमेरिका यात्रा भी सेल्फ गोल की माफिक होकर बुमरेंग होगी।

पढ़िए शाइनिंग टाइम्स की Final Investigation Report (FIR)

पिछले करीब 5 सालों से कांग्रेस के एक मात्र और अविवादित स्टार बने राहुल गांधी का सबसे बड़ा स्ट्राइक मोदी सरकार विशेषकर व्यक्तिगत नरेंद्र मोदी को घेरना रहा है। इसका राहुल को माइलेज भी मिला है। एक समय में ‘पप्पू’ जैसी पहचान रखने वाले राहुल गांधी आजकल भारत की जनता और मीडिया में चर्चा का विषय है। एक समय ऐसा था जब राहुल की बातों को मजाक में उड़ाया जाता था। राहुल के मजाकिया मिम्स भारत में वायरल होते थे। लेकिन आजकल उनकी बातों को गंभीरता से लिया जाता है। भारतीय लोकतंत्र के लिए भी यह सुखद है की विपक्ष का कोई चेहरा सत्ता पक्ष को घेर कर उसे सचेत रखता है।

लेकिन विपक्ष के नेता राहुल गांधी की विदेश की धरती से भारत सरकार विशेषकर प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधना किसी चुनौती से कम नहीं है। राजनीतिक पंडित राहुल के विदेशी वर्जन के लाभ – हानि का मूल्यांकन कर चिंतित है। भले ही राहुल को निजी रूप से इमेज बिल्डिंग में और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को जोश भरने में यह फायदेमंद हो लेकिन भारत के लिए शायद यह घाटे का सौदा हो।

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का संयुक्त राष्ट्र संघ के पटल पर कश्मीर का मसला ले जाने को भारत के लिए नुकसानभरा कदम माना जाता है। उस घटना से सबक लेकर लगभग सभी राजनेताओं ने ‘घर का झगड़ा घर में ही’ की नीति का पालन किया है।

यूक्रेन, गाजा पट्टी सहित दुनिया के कई मसलों को सुलझाने में भारत की बढ़ती दखल के बीच राहुल गांधी का राजनीतिक एजेंडे के लिए विदेश की धरती से बार बार भारत की सरकार और प्रधानमंत्री को घेरना कई भारतीयों को अखरने लगा है। राहुल की बनती इमेज और कांग्रेस की बढ़ती ब्रांडिंग के वक्त राहुल गांधी का विदेशों में किया जा रहा ऐसा उत्साहजनक प्रयास रिवर्स रिजल्ट दे सकता है, यह जानकर सत्तासीन भाजपा भी आशान्वित है।

पिछले 5 सालों में भारत में किसी राजनेता ने सबसे ज्यादा राजनीतिक मेहनत की है तो वो राहुल गांधी है। संसद से सड़क तक, अदालत से मीडिया तक सभी मंचों पर उन्होंने मेहनत कर अपना ‘राहुल ब्रांड’ स्थापित किया। विपक्ष का नेता चुना जाना उनकी अब तक की सबसे बड़ी अधिकृत पदवी है, जो इंडिया गढ़बंधन के स्थापित चेहरों के बीच राहुल गांधी की प्रतिष्ठा को सिद्ध करती है।

लेकिन अति उत्साह में राहुल गांधी के दिए जाने वाले बयानों से ‘राहुल ब्रांड’ कई बार बुरी तरह से प्रभावित हुआ। राहुल गांधी के विदेश की धरती से मोदी सरकार को निशाना बनाने के अनियोजित जतन में भारत के संस्कृति, गौरव और राष्ट्रवाद को आघात लग जाता है। जो भारतीयों के लिए अभुलनीय कृत्य बन जाता है।


मसलन अमेरिका के दौरे के वक्त राहुल ने एक सिख व्यक्ति को इंगित करते हुए कहां, “मेरे पगड़ीधारी भाई, आपका नाम क्या है? लड़ाई इस बात की है कि क्या एक सिख को भारत में पगड़ी या कड़ा पहनने का अधिकार है या नहीं। क्या सिख के रूप में वे गुरुद्वारे जा सकते है या नहीं।”

सिख धर्म का उदाहरण देकर भारत धार्मिक आजादी पर बोलना राहुल के लिए सेल्फ गोल जैसा हो गया। जिस भलविंदर नाम के सिख को इंगित करते हुए राहुल ने यह बात बोली थी उन्होंने बाद में मीडिया के सामने आकर नाराजगी जताते हुए कहा कि कांग्रेस सांसद राहुल की बातों में कोई तथ्य मौजूद नहीं है। वे बेझिझक पगड़ी और कड़ा पहनकर भारत में घुम सकते है। भलविंदर ने आरोप लगाते हुए कहा कि आखिर राहुल से किसने ऐसा कहा, क्या कोई खास एजेंसी या कोई खास लोग उन्हें ऐसी बाते बता रहे है।

राहुल के इस दिशाहीन उदाहरण की वजह से ना केवल भारतीय सिख समुदाय नाखुश हुआ बल्कि भाजपा को घर बैठे को सिख दंगों में कांग्रेस की विवादित भूमिका को फिर से जीवित करने का मौका दे दिया। भाजपा प्रवक्ता आर पी सिंह ने कहा कि 1984 में दिल्ली में 3000 सिखों का नरसंहार किया गया। उनकी पगड़ियां उतार दी गई। उनके केश काट दिए गए, दाढ़ी मुंडवा दी गई। राहुल गांधी यह नहीं कहते कि यह तब हुआ जब कांग्रेस सत्ता में थी।

भाजपा के केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा, “राहुल गांधी तथ्यों को जाने बिना बोलते है। सिखों को असुरक्षा की भावना केवल 1984 के समय हुई थी।”


अमेरिका के जार्जटाउन विश्वविद्यालय में आरक्षण पर राहुल का बयान बुमरेंग हो गया। राहुल ने वहां छात्रों के सवाल का जवाब देते बोल गए कि जब भारत में (आरक्षण के लिहाज से) निष्पक्षता होगी, तब हम आरक्षण खत्म करने के बारे में सोचेंगे।
राहुल गांधी का यह बयान भारत की राजनीति में कांग्रेस की आरक्षण खत्म करने की अधिकृत स्वीकृति के रूप में उछला।

दलित राजनीति की चेहरा रही मायावती ने राहुल की इस मिस फिल्डिंग को लपक लिया। मायावती ने कहा, “कांग्रेस के सर्वेसर्वा राहुल गांधी के इस नाटक से सतर्क रहे। …… इससे (राहुल के बयान से) स्पष्ट है कि कांग्रेस वर्षों से आरक्षण को खत्म करने के षड्यंत्र में लगी है। …. (कांग्रेस) पार्टी केंद्र की सत्ता में आते ही, अपने इस बयान की आड़ में आरक्षण जरूर खत्म कर देगी। ….. संविधान और आरक्षण बचाने का नाटक करने वाली इस पार्टी से जरूर सजग रहे। …… इस पार्टी से इंसाफ नहीं मिलने की वजह से बाबा साहेब डा. भीमराव अंबेडकर ने कानून मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।”

राजनीतिक रणनीतिकार से राजनेता बने जन सुराज कैंपेन के प्रशांत किशोर ने भी राहुल के आरक्षण पर बयान को कांग्रेस के कन्फ्यूजन वाले बयान के रूप में बताते हुए कहा, “राहुल को कई बार पता नही होता है कि क्या बोलना है। लोक सभा चुनाव के दौरान राहुल ने आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से बढ़ाने की वकालत की लेकिन अमेरिका में विपरीत बयान दे दिया। प्रशांत ने इसे भ्रम की स्थिति बताते हुए कहा कि कांग्रेस को आरक्षण को लेकर अपना स्टैंड स्पष्ट करना चाहिए। आरक्षण के मामले में चारों और से घिरे राहुल गांधी को स्पष्टीकरण देना पड़ा कि उनके बयान को गलत तरीके से दिखाया गया। कांग्रेस आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से ज्यादा करेगी।


अमेरिका यात्रा के दौरान चीन के प्रति सकारात्मक बयान ने भी राहुल को मुसीबत में डाला। रोजगार पर बोलते हुए राहुल ने अकारण ही भारत से चीन को बेहतर बता दिया जो भारतीय राष्ट्रवादी मानसिकता से इतर माना जाता है।

राहुल ने कहा, “भारत में रोजगार की समस्या है।…. चीन में निश्चित रूप से रोजगार की समस्या नहीं है।” भाजपा ने दावा किया की इससे उनका चीन प्रेम उजागर हो गया।


भरतविरोधी मानी जाने वाली अमेरिका की सांसद इल्हान उमर और पाकिस्तान की इमरान सरकार और बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार को बदलवाने में मुख्य भूमिका के रूप में देखे जाने वाले अमेरिकी राजनयिक डोनाल्ड लू से राहुल गांधी की अमेरिका यात्रा के दौरान मुलाकातें भी विवादों की वजह बनी।

अमेरिकी सांसद इल्हान उमर भारत की धुर विरोधी मानी जाती है। उन्होंने हाल ही में पाकिस्तान के तथाकथित इशारे पर पाक अधिकृत कश्मीर की यात्रा कर कश्मीर पर भारत के नियंत्रण की आलोचना की थी।

गृह मंत्री अमित शाह ने राहुल पर पलटवार करते हुए कहा, “जम्मू कश्मीर में JKNC के देशविरोधी और आरक्षणविरोधी एजेंडे का समर्थन करना हो या फिर विदेशी मंचों पर भारत विरोधी बातें करनी हो, राहुल गांधी ने देश की सुरक्षा और भावना को हमेशा आहत किया है।”

उमर से राहुल गांधी की मुलाकात पर भाजपा के प्रवक्ता प्रदीप भंडारी ने कहा, “राहुल गांधी की पाकिस्तान समर्थित और भारत विरोधी उमर के साथ मुलाकात यह स्पष्ट कर देती है कि राहुल भारत विरोधी तबके के साथ खड़े होते है और उनके मनोबल बढ़ाते है।”

तख्तापलट में माहिर माने जाने वाले अमेरिका विदेश मंत्रालय में दक्षिण और मध्य एशिया मामलों को संभालने वाले लू की जल्द ही होने वाली भारत और बांग्लादेश के दौरे पर लोगों की आशंकाभरी नजर है।


तीन दिवसीय अमेरिका यात्रा के दौरान राहुल गांधी  में दिए कई बयान भारत के जन मानस की अपेक्षाओं के इतर जाकर ‘राहुल ब्रांड’ और कांग्रेस के लिए बुमरेंग साबित होंगे। ऐसा राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है। मसलन,

“अगर चीन आपके क्षेत्र पर कब्जा कर ले तो अमेरिका की क्या प्रतिक्रिया होगी?…. मुझे नहीं लगता की पीएम मोदी ने चीन को बिल्कुल अच्छी तरह से संभाला है।”

“हम ऐसे दौर में पहुंच गए है जो हमने भारत में कभी नहीं देखा था। यह आक्रमण, हमारे लोकतांत्रिक ढांचे की नींव पर हमला है।”

“चीन सैनिकों ने लद्दाख में दिल्ली के आकार की जमीन पर कब्जा कर रखा है। यह एक आपदा है। मीडिया इसके बारे में लिखना पसंद नहीं करता।”

“भारतीय इतिहास में, मैं मानहानि के लिए जेल की सजा पाने वाला एकमात्र व्यक्ति हूं। हमारे एक मुख्यमंत्री अभी जेल में है।”

“हमें राजनीतिक यात्रा निकालने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि लोकतंत्र में कुछ भी काम नहीं कर रहा था।”

मानवाधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता पर रिपोर्ट जारी कर भारत सहित दक्षिण एशिया के देशों की आंतरिक संप्रभुता में प्रभावी हस्तक्षेप करने का अनवरत प्रयास करने वाले अमेरिका की धरती पर राहुल गांधी का मोदी सरकार को घेरने के लिए देश के आंतरिक मामलों को उजागर करना कई राजनीतिक विश्लेषकों को घातक परिणाम वाला कदम महसूस होता है।


” एकता और अखंडता पर कमेंट कर राहुल गांधी अपनी छवि खराब करते है साथ ही राष्ट्र हित के लिए भी खतरनाक और गंभीर” – निपुण आलमबायन

जाने माने संविधानविद, शिक्षाविद और राजनीतिक विश्लेषक निपुण आलमबायन कहते है,

“राहुल गांधी अब केवल कांग्रेस के नेता ही नहीं है बल्कि हमारे लोकतंत्र में विपक्ष के नेता भी है। इसलिए राहुल गांधी का कोई भी बयान राष्ट्रीय संदर्भ में होता है। … विदेश की धरती पर प्रधानमंत्री या सत्ताशीन पार्टी पर सामान्य टिपण्णी करना चल सकता है। लेकिन हमारे संविधान के प्रियेंबल में घोषित देश की एकता और अखंडता पर कमेंट कर राहुल गांधी अपनी छवि खराब करते है साथ ही राष्ट्र हित के लिए भी खतरनाक और गंभीर बात हो जाती है।”

सुने शाइनिंग टाइम्स को निपुण आलमबायन के दिए विशेष वक्तव्य को


विपक्ष की अति आक्रामकता हिंदुस्तान में बर्दास्त कर सकते है लेकिन बाहरी धरती से आक्रामकता देश बर्दास्त नहीं करेगा। – सुरेश मुद्गल

समसामयिक विषयों पर फिल्मों के जरिए संदेश देने वाले फिल्म निर्देशक सुरेश मुद्गल राहुल गांधी की विदेशी धरती पर अति आक्रामकता से व्यथित है। उन्होंने कहा कि विपक्ष आजकल अति आक्रामक रवैया प्रदर्शित कर रहा है। यह अति आक्रामकता देश में तो बर्दाश्त हो जायेगी लेकिन दूसरे देश की धरती से नहीं। युवा इसका सही समय पर जवाब देगा। सुने सुरेश मुद्गल को।

विचारक और व्यवसायी हरिओम शर्मा ने शाइनिंग टाइम्स को बताया की विदेश में जाकर भारत की संस्थाओं पर बयान देकर राहुल गांधी देश में अराजकता फैलाने का प्रयास कर रहे है। सुने हरिओम शर्मा को


जब घर में आवाज को दबा दिया जाए तब व्यक्ति घर से बाहर जाकर बोलने को मजबूर होता है – नंद किशोर चतुर्वेदी

बेबाक टिपण्णीकार और फिल्ममेकर नंद किशोर चतुर्वेदी ने शाइनिंग टाइम्स को बताया कि मजबूरी में राहुल गांधी विदेश की धरती से अपनी बात रख रहे है। उन्होंने कहा कि देश का मीडिया बंधक बना लिया गया है, आवाज को सुना तो क्या महसूस भी नहीं किया जा रहा है। राहुल गांधी अमेरिका में बोली बातों को भारत में भी कहते थे लकिन तब उन्हें नहीं सुना जाता था। लेकिन अमेरिका की धरती से वो ही बातें दोहराई गई तो सुनी गई, मीडिया में चर्चा का विषय बनी। फिर बुराई क्या है? बाहर से इंपोर्ट करा कर अपनी बात रखना भी एक तरीका है।

सुने नंद किशोर चतुर्वेदी को

 

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  • Bhanwar Singh Ranawat, Editor - in - Chief

    भंवर सिंह राणावत भारत के पत्रकारिता जगत में विख्यात पत्रकार, विचारक और चेंज मेकर माने जाते है। इन्होंने 2009 में लोकप्रिय मीडिया हाउस शाइनिंग टाइम्स की स्थापना कर जनता की पत्रकारिता, जनता के द्वारा जैसे अद्वितीय लोक पत्रकारिता मॉड्यूल का इजाद किया।

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